Thursday, August 7, 2014

थू करने के लिए नही है मेरी जबान पर थूक

बकवास करते है आप ,जाति कहाँ है ?

बीच बाजार में घसीटते हुए ले जाकर
लटका दिया उल्टा
वही जहाँ है फव्वारे और ढेर सारे फूल खिलने की प्रतीक्षा में
ठीक उसी सड़क पर जो हवाई अड्डे से औधोगिक केंद्र को खींचती है
जिसका दूसरा हाथ बिग बाजार के माल के नीचे रखा हुआ है
वही पर
उसकी गरदन को धड से अलग करने के लिए
तलवार से काटा गया
खून निकला और वही जिसे कली कहकर हँसते हो
उसके भीतर चला गया
किसी को पता ही नहीं चला
काले शीशे से लाल रंग तो दिखता नहीं लाल
और हीरो होंडा बजाज से निगाह आगे की तरफ होती है
उसकी नजर में भी घुस न सका खून
फुटपाथ को तो घेरकर शर्मा स्वीट सेंटर ने कंजूमर के हवाले कर दिया
राहगीर नहीं है कोई उसकी राह खा गया वह
उसी वक्त सुपारी के कारखाने में जल रहा है कुछ तो भी
भट्टी के नीचे
सुपारी को सेंकने के लिए और फ़ैल रहा है उसका धुआँ
जो जाता है सीधे आँखों में
मसलते है और आगे बढ़ जाते है कि उनके पास नहीं है वक्त
गाली देने के लिए भी
तभी किसी आवाज से कोई समाचार आता है
दिमाग के भीतर भट्टी में
पहाड़ियों में गड्डों से जाता नहीं हर कोई डही
जहाँ फरमान हुआ है

तस्दीक करनी है उसी जाति के तो हो लेकिन ये काम करते हो ?
विकास बहुत हुआ
बहुत कर ली कोटे वालों ने तरक्की हक़ मारकर .
गाँव ,पटवारी,पंचायत ,स्कूल के प्रमाण के बाद भी जरुरी है
संतुष्टि के लिए फोटो .
भरोसा ही नहीं होता मनुष्य को देखकर
कागज़ पंचनामा रिकार्ड शपथपत्र
सब हो सकते है फर्जी

बनाया जा सकता है आदमी को भी फर्जी
जाति प्रमाण पत्र तो सदियों से बनाए जाते रहे है
सदियों से करते आ रहे है यही कामधंधा हमारे पुरखे
तब शिवाजी की जाति के लिए बनारस से बनवाये गया था रिकार्ड

अब कलयुग में ऊँची जात का नहीं चाहिए प्रमाण
वो तो रोटी बेटी से कर लेते है
बार बार हजार बार सरेआम कहते है
कभी अपने गरीब होने के पुछले को जोड़कर तो कभी मूंछ पर ताव देकर
कहते हो ही ही करते हुए बनिया आदमी हूँ

तय कर देते हो और सामने वाला भूल गया हो तो याद कर ले अपनी जाति

कोटा ,आरक्षण रिजर्वेशन मेरिट प्रतिभा पलायन देश दुनिया
राजनीती वोटबैंक गंदगी कचरा फिल्म हिरोइन एसएमएस एमएमएस वाट्स अप नीली फिलिम गाने ....बाय करते हो
कि भोत काम बाकि है
ये जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है
ये देश भी कोई देश है ...

उस बच्चे से जिसे भगवान का रूप बोलते हुए किसी को शर्म नहीं आती
कहते हो पाना हो स्कालरशिप तो ले आओं मरे हुए जानवर के साथ
अपना फोटो...

ढाई सौ किलोमीटर दूर जब सुनता हूँ
तो अपने को किसी आदिम गुफा में पाता हु
सन्न हु
कि कितने कुत्सित विचार है तुम्हारे
कि मानसिकता की सडन के बाद भी तुम अभी भी हो
उसी गटर के कीड़े जो रेंगता है गंदगी छोड़ता है और सड़ जाता है
थू करने के लिए नही है मेरी जबान पर थूक

बस बचे है मेरे पास शब्द जिन्हें वापरता हूँ
कि चूल्हा जलाने के काम आ जाए
कि कक्षा नौ के पाठ की तरह अपने बेटे को पढ़ा सकूँ
जब कोई मांगे तुमसे इस तरह का प्रमाण
तो मेरी तरह खुद का क़त्ल मत होने देना
मेरे बेटे उससे कहना अंकल जी मेरे पास है एट्रोसिटी का कागज
घर में है संविधान .
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शनिवार, 12 अक्टूबर 2013...
janpaksh blog me..
http://jantakapaksh.blogspot.in/2013/10/blog-post_12.html

1 comment:

कविता रावत said...

जात-पात, छुआछूत, भेदभाव की बीमारी कुछ लोगों को ज्यादा ही रहती हैं, वे अपने कुंए से बाहर निकलना ही नहीं चाहते, सच ऐसे लोग जो समाज का वातावरण दूषित करने को कोई कोर कसर नहीं छोड़ते, उनसे बड़ी घिन्न होती है ..
बहुत सटीक तो टूक रचना बहुत अच्छी लगी

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